Rahul...

06 February 2012

धुआंती आँखों को

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दुःख सबकी नहीं होती
इसकी गलबहियां सब से
नहीं जमती
आदि कथा में
डगमगाते क़दमों
को थामते
गिरकर उठने
और....
फिर से गिरने का दुःख
धुआंती आँखों को 
सोखते  माँ के आँचल में ... 
बंधा खाली लिफाफा 
 हर बार बैरंग आसरे
..को गले लगाती 
 अपने हिस्से का दुःख......
दरकते आइनों से 
तरुणाई को नापती
सरपट भागती बेटी...
कांपती आँखों में
अनमने अंदेशे को जीते 
पिता की आँखों का दुःख
चूल्हे की बुझती राखें 
 
फिर से...
गमजदा होते भूखे बर्तन 
इतने के वाबजूद
जब बीते खड़े पहाड़ 
हर रात सामने आते हैं 
बिना बताये...
कई बार सच में 
इसकी गलबहियां
सबसे नहीं जमती
दुःख तो हमारी माएं जीती है
दुःख तो हमारी माएं सीती हैं 
उसी आँचल में
जिसमे बंधा होता है
धुआंती आँखों को
सोखता..
बंधा खाली लिफाफा

                                                            राहुल.......


4 comments:

  1. मन के भावों को बहुत गहराई से प्रस्तुत किया है आपने .....जीवन की सच्चाई उभर आई है आपके शब्दों में ...!

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  2. बहुत बढ़िया रचना |गहन भाव लिए |

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  3. धुआंती आँखों का दुःख ..व्याकुल सा हो गया..मन

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