Rahul...

29 October 2011

रात नहीं होती .....

रात जो ठहर जाती है.
रात जो गुम हो जाती है.
रात जो परिंदों को ....
अपनी कहानियों का हिस्सा बनाती है..
शायद उस रात का अपना आशियाँ नहीं होता...
रात का अपना संबल नहीं होता.
बच्चे दूध की भीनी महक
रात में गुनगुनाते हैं...
कुछ सपने लड़कियों के ..
रात में टिमटिमाते हैं..
रात जो ठहर जाती है
रात जो सभी तिनकों को
अपने घोंसला में सजाती है ..
शायद उस रात का अपना मकान नहीं होता..
प्यार की चिट्ठियाँ रात में,
तन्हाई....रुसवाई  रात में,
अलबेली कायनात रात में,
पत्तों पर गिरती ओस....
 रात में बुनी जाती है ..
शायद उस रात का अपना कोई आइना नहीं होता
रात के सफ़र में यकीनन अपनी कोई ....
रात नहीं होती ................


                                                                                     राहुल

1 comment:

  1. बढ़िया लिखा है.पर आपने अभी तक वर्ड verification नहीं हटाया है . कृपया हटा दें..

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