Rahul...

27 October 2011

छोटी सी इबादत -11

तुम ...कहाँ सो गए...
...किसी को भी शायद भ्रम सा हो जाए.. कहीं तो कुछ नदियाँ घुलती रहीं होंगी..तेरी कतरन ....बिलीन होती पातालगंगा में मिल जायेगी...मुझे भी एक भ्रम ने जिन्दा रखा है.मै हमेशा तुमसे कुछ चुराती रही हूँ...तुम जानते भी थे इस बात को..  पर तुम मुस्कुराते रहते थे. खुद की खींची लकीरों पर जो इंसान हांफता.. थका-मांदा अभी लौटा है ...वो तो सिर्फ चुप रह सकता है......और ऐसा ही हुआ भी.......
 मै इतनी सारी नदियों के शाप से कैसे मुक्त हो सकूंगी..तुम तो सभी जगह, सभी धाराओं में मचलते हुए बिलीन होते रहे..कितनी कतरन समेटेंगे आप ? आज वक़्त किसी मोड़ पर नहीं खड़ा है, बल्कि खुद के कटघरे में संताप की दुहाई दे रहा है.... मुझे छोड़ दो..मुझे गुजर जाने दो..मुझे उसी धुंध में गुम जाने दो.....मुझे होश नहीं है अब......तहसीम मुनव्वर की सिर्फ एक लाइन ...जाने तुम कैसे सो जाते हो ? ....जाने तुम कैसे सो जाते हो ?........

                                                                        राहुल

1 comment:

  1. कितनी कतरन समेटेंगे .. अच्छी लगी.

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