Rahul...

13 August 2011

मखमली चाँद के पार

       चाँद के पार की दुनिया ... कितना मखमली ... कितना शीतल...हम कई जन्मों तक उसी में अपना सब कुछ तलाशते रहे ...तो क्या मिलेगा ? शुरू से अंत तक न जाने कितनी राते टूट कर तारों में मिल  जाती है और हम  ताकते रह जाते हैं ......मै अपने आप से कह नहीं पाती ...आपने एक ख्वाब दिया ....कितना  मदहोश कर  देता है आज मेरे हाथ में अपनी कोई कहानी नहीं......

       ...कच्ची उम्मीदों  को कभी बारिश की अदाबत महँगी पड़ती है.. तो कभी सन्नाटों में डूब जाने की चिंता ..आज आप अपने मन से कितने दूर हो गए हैं..चाँद से भी बहुत पार.. मगर मैंने आपको जाने कहा दिया...थोडा सा मैंने चुरा लिया..मेरे चारों तरफ पश्मीने की एक नाजुक और नर्म दीवार है..दम घुट जा रहा है और चाँद मखमली आगोश में कैद है..हर तरफ राख में लिपटी तुम्हारी पवित्र साँसे तड़प रही है.. इतना सा मंजर दे गए हो तुम ....न...न..आप.. कभी जी में आता है .....आज की रात के बाद उसी राख में मिल जाऊं ....आप इतना  तो एहसान करेंगे मुझ पर ...पर सहर की उम्मीद नहीं ...चाँद थोडा सा बाहर निकल रहा है अपनी आगोश से ....हम कितना बेवश हैं..मेरी भी मजबूरी रही होगी...कच्चे रेशम में लिपटी एक लड़की सदियों से अपना  लिबास बुन रही है ...पर हर  बार एक सिरा अधूरा रह जाता है...कोई देह को पा लेता है तो कोई आत्मा को चुपके से अपनी  पूरी कायनात में समेट लेता है...और चाँद के पार की दुनिया  में  गुम हो जाता है ...ठीक आपकी तरह.....

                                                                                                                        

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