Rahul...

24 December 2017

शब्दों का आकार...

प्रार्थना व ईश्वर के बीच...
कातर मोह जैसे बसे हुए,
ह्रदय से विलग तो नहीं हुए
तुम समंदर संसार में गुम हुए.
शब्दों का आकार तो नहीं है जीवन
उम्मीदों का बाजार तो नहीं है जीवन
क्यों एक सफर मेरा भी था ?
क्यों रात सहर मेरा भी था ?
प्रार्थना व ईश्वर के बीच...
मधुर झंझावात लिए हुए
मरते हुए, मिटते हुए
तुम ख़ामोशी से हम हुए
बेरहम बेमतलब तो नहीं है जीवन
विवश तलब तो नहीं है जीवन
क्यों एक सफर मेरा भी था ?
क्यों रात सहर मेरा भी था ?

1 comment:

  1. ये लंबी चुप्पी कब टूटेगी ? अब तो शब्द भी उब रहें होंगे ।

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