Rahul...

12 August 2014

लंबे जुलूस में....

 किसी को याद नहीं रहता। कौन मारा गया ? कौन रात -दिन घुल-घुल कर मर रहा है ? किसी को याद नहीं रहता  और पता भी नहीं चलता। लोग मरते हैं।  मरते जाते हैं।  जिन्हें अपने जीने, और अपने जिए जाने के सबूतों का प्रचार करना नहीं आता--कोई उनकी याद नहीं रखता है।  याद रखने से हमारा क्या फायदा ? इस लंबे जुलूस में कौन कहाँ छूट गया, कौन कहाँ पाँव घसीट रहा है , क्यों याद किया जाए ? जुलूस चलता रहेगा।  लोग शामिल होंगे......साथ चलेंगे...... पीछे छूट जाएंगे।..........................

ये एक बेहतरीन किताब की चंद पंक्तियाँ है. किताब का नाम है.. मछली मरी हुई.  राजकमल चौधरी के कलमों से निकली इस किताब में वो सब कुछ है जो जीवन में चिपका हुआ है, हमारे आसपास है और हमारे अंदर बहुत मजबूती से धंसा हुआ है. पिछले महीने ही परदेश में रहने वाले मेरे एक अजीज मित्र व भाई ने ये किताब दी थी.. अब मैं अपने दोस्त व उनसे पहली मुलाक़ात पर भी लिख रहा हूँ. बस कोशिश कर रहा हूँ.........  

4 comments:

  1. इनकी एक लम्बी कविता भी है जिसका नाम है 'मुक्तिप्रसंग'. इन्टरनेट पर मौजूद नहीं है. वाणी प्रकाशन ने उसे ३० पन्नों के किताब का शक्ल देकर छापा हुआ है. कभी उसे ज़रूर पढ़िएगा.

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  2. गहरे शब्द ... जो अपना प्रभाव छोड़े बिना नहीं रह पाते ...

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  3. प्रभावशाली वक्तव्य...

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