Rahul...

08 April 2013

हम कुछ रात चलते हैं ...

अदना तमाशा बनकर
जिद्दी शोर में गलकर
न जाने ..कैसे ?
अकेले अजनबी शब्द बनते हैं
हम कुछ रात चलते हैं ........

सलीकों का ताप बुन कर
धधके रूह की खुशबू चुनकर
न जाने ..कैसे ?
मुमकिन मुस्कान बदलते हैं
हम कुछ रात चलते हैं ........
 
हौसला कहाँ संभलता है 
बुझा सैलाब कब सुलगता है
न जाने .. कैसे ?
स्वप्न सुख की शक्लों में ढलते हैं
हम कुछ रात चलते हैं ........

निष्पाप आंसुओं का आलिंगन
अल्हड़ सा गुनगुना चुम्बन
न जाने .. कैसे ?
वो हालात पल-पल मचलते हैं 
हम कुछ रात चलते हैं ........

24 comments:

  1. हौसला कहाँ संभलता है
    बुझा सैलाब कब सुलगता है
    न जाने .. कैसे ?
    स्वप्न सुख की शक्लों में ढलते हैं
    हम कुछ रात चलते हैं ........
    जीवन की गहन अनुभूति
    सुंदर रचना
    बधाई

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  2. निष्पाप आंसुओं का आलिंगन
    अल्हड़ सा गुनगुना चुम्बन
    न जाने .. कैसे ?
    वो हालात पल-पल मचलते हैं
    हम कुछ रात चलते हैं ........

    लाजवाब बिम्ब आपने पेश किया है. बहुत गहराई है आपके शब्दों में. रात की तासीर ही कुछ ऐसी है. वरना रात भार नींद क्यों न आती.

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  3. फिर तो ये शब्द अजनबी कहाँ रह जाते हैं ? मचल-मचल कर तो गुनगुनाते रहते हैं..

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  4. ''Na jaane kaise ? Mumkin muskan badlte hain..hum kuch raat chalte hain''

    bahut khub..

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  5. गहरे भाव लिए बहुत ही बेहतरीन रचना,आभार.

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  6. हौसला कहाँ संभलता है
    बुझा सैलाब कब सुलगता है
    न जाने .. कैसे ?
    स्वप्न सुख की शक्लों में ढलते हैं
    हम कुछ रात चलते हैं ........
    बेहद गहन भाव रचना के ....उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति
    आभार

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  7. अनुभूति का आवेग शब्दों में ढल के संयमित हो गया है .......हम कुछ दूर चलते हैं ,हम रात चलते हैं हर रात चलते हैं ...शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .

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  8. गहन भाव लिए सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  9. हौसला कहाँ संभलता है
    बुझा सैलाब कब सुलगता है
    न जाने .. कैसे ?
    स्वप्न सुख की शक्लों में ढलते हैं
    हम कुछ रात चलते हैं
    ........यह पंक्तियाँ सबसे सुन्दर लगीं...:)

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  10. उम्दा,बहुत प्रभावी भावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति के लिए !!! राहुल जी बधाई

    recent post : भूल जाते है लोग,

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  11. हम कुछ रात चलते हैं ...बेहतरीन रचना !!

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  12. राहुल जी नमस्कार ... पहली बार आपके ब्लॉग में पहुंची हूँ ... पहुचना सार्थक हुआ ... रचना सुन्दर , सुन्दर लेखन .. बधाई

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  13. बहुत सुन्दर.....
    निष्पाप आंसुओं का आलिंगन
    अल्हड़ सा गुनगुना चुम्बन
    न जाने .. कैसे ?
    वो हालात पल-पल मचलते हैं
    हम कुछ रात चलते हैं ........
    वाह!!!!

    अनु

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  14. बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें

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  15. हौसला कहाँ संभलता है
    बुझा सैलाब कब सुलगता है
    न जाने .. कैसे ?
    स्वप्न सुख की शक्लों में ढलते हैं ..

    काश सुख की शंकों में ढलने वाले स्वप्न पूरे हो सकें ...
    गहरा भाव लिए है रचना ...

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  16. निष्पाप आंसुओं का आलिंगन
    अल्हड़ सा गुनगुना चुम्बन
    न जाने .. कैसे ?
    वो हालात पल-पल मचलते हैं
    हम कुछ रात चलते हैं
    प्रेम का अनूठा भाव लिए खुबसूरत अभिव्यक्ति
    LATEST POSTसपना और तुम

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  17. हौसला कहाँ संभलता है
    बुझा सैलाब कब सुलगता है
    न जाने .. कैसे ?
    स्वप्न सुख की शक्लों में ढलते हैं
    हम कुछ रात चलते हैं ........


    बेहद की उदासी और मौन से संसिक्त है यह रचना लिखी आपने है तदानुभूति हमें भी हुई है उन क्षणों की -हम कुछ रात चलते हैं .

    सितारों को शायद खबर भी नहीं कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की .

    न जी भरके देखा न कुछ बात की ,बड़ी आरजू थी मुलाकत की .

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    1. आपकी कविता पर मैं जो कुछ मन से कहना चाहता था, उसके लिए विरेन्‍द्र कुमार शर्मा जी के इस उपरोक्‍त कथन का ही अनुसरण करना चाहूंगा। आपकी दर्शनपूर्ण पंक्तियां मेरे लिए अतिभारी हो जाती हैं सुगमता से समझना। शर्मा जी ने पथ आसान किया, इस हेतु उनका भी आभार। आपके यथोचित प्रत्‍युत्‍त्‍ारों हेतु धन्‍यवाद।

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  18. हौसला कहाँ संभलता है
    बुझा सैलाब कब सुलगता है
    न जाने .. कैसे ?
    स्वप्न सुख की शक्लों में ढलते हैं
    हम कुछ रात चलते हैं ........

    बहुत खूब, बढ़िया
    सादर!

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  19. सलीकों का ताप बुन कर
    धधके रूह की खुशबू चुनकर
    न जाने ..कैसे ?
    मुमकिन मुस्कान बदलते हैं
    हम कुछ रात चलते हैं ........

    बेहद की सशक्त अनुभूति को शब्द और अर्थ और भाव दिए हैं आपने शुक्रिया आपकी सादर टिप्पणियों का राहुल भाई दिलसे .

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  20. नवरात्रों की बहुत बहुत शुभकामनाये
    आपके ब्लाग पर बहुत दिनों के बाद आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ
    बहुत खूब बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    मेरी मांग

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  21. हौसला कहाँ संभलता है
    बुझा सैलाब कब सुलगता है
    न जाने .. कैसे ?
    स्वप्न सुख की शक्लों में ढलते हैं
    हम कुछ रात चलते हैं ....

    देर से टिप्पणी के लिए क्षमा ....ताज्जुब है आपकी इतनी साडी पोस्ट छूट कैसे गयीं ...??
    गहन अनुभूति है यह रचना ...बहुत सुन्दर ...

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