Rahul...

18 February 2012

मेरी राख में ढल जाओगे

सिर्फ तेरे..
शब्दों में होती हूँ
मनमुक्त गगन में
जीती हूँ........
बात टूटी बातों का
साथ अधूरी रातों का
तेरी कायनात में
रोज ढलती हूँ..
मनमुक्त गगन में
जीती हूँ........
मौन दरिया आँखों का
किस्सा खालिश किस्सा हूँ
तुम मानो..या
फिर ना मानो
पूरा तेरा हिस्सा हूँ
बस..कही नहीं
मै होती हूँ.. 
मनमुक्त गगन में
जीती हूँ........
अलग कहाँ हो पाओगे
क्या..सच में जी पाओगे
मेरी राख में ढल जाओगे
तेरी उमस में
पिघलती हूँ..
मनमुक्त गगन में
जीती हूँ........

                                                                      राहुल ...

  

5 comments:

  1. 'तुम मानो या फिर ना मानो पूरा तेरा हिस्सा हूँ '
    मन को छूती पंक्तियाँ |
    अच्छी अभिव्यक्ति |
    आशा

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  2. ओहो ! भाव भिगो रही है..मनमुक्त गगन ..गहरे शब्द ..

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  3. होली की शुभकामनाए..

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