मेरे खाली जगह में
सब कुछ..
रच-बस गया है.....
स्मृतियाँ...
महकते सपनों सी ...
उन्मुक्त कामनाएं
हमारे होने को..
साकार करता...
खाली सा वो जगह
नदी की तरह
दौड़ती-भागती
खारिज होती रहती है
तुम्हारे...
खतरे के निशान से ऊपर
कुसम की क्यारियों में......
खाली सा
रचा-बसा मेरा गाँव
हाथों से फुर्र होती..
तितलियाँ....
नहीं होते हैं...
जब हम ...
नीले अम्बर में टंगी
अपने खाली जगहों के साथ ...
मुस्कुराहटें तुम्हारी
कुसुम की क्यारियों में
मिट्टी का स्पंदन
उगाती है...
मेरे रचे बसे गाँव में
कुछ किसान..
पिछले कई सालों से
टूटे बर्तनों की
फसल बो रहे हैं.....
राहुल
सब कुछ..
रच-बस गया है.....
स्मृतियाँ...
महकते सपनों सी ...
उन्मुक्त कामनाएं
हमारे होने को..
साकार करता...
खाली सा वो जगह
नदी की तरह
दौड़ती-भागती
खारिज होती रहती है
तुम्हारे...
खतरे के निशान से ऊपर
कुसम की क्यारियों में......
खाली सा
रचा-बसा मेरा गाँव
हाथों से फुर्र होती..
तितलियाँ....
नहीं होते हैं...
जब हम ...
नीले अम्बर में टंगी
अपने खाली जगहों के साथ ...
मुस्कुराहटें तुम्हारी
कुसुम की क्यारियों में
मिट्टी का स्पंदन
उगाती है...
मेरे रचे बसे गाँव में
कुछ किसान..
पिछले कई सालों से
टूटे बर्तनों की
फसल बो रहे हैं.....
राहुल
वाह....
ReplyDeleteमुस्कुराहटें तुम्हारी
कुसुम की क्यारियों में
मिट्टी का स्पंदन
उगाती है...
बहुत सुन्दर !!!
अनु
मेरे खाली जगह में
ReplyDeleteसब कुछ..
रच-बस गया है.....
स्मृतियाँ...
महकते सपनों सी ...
उन्मुक्त कामनाएं
हमारे होने को..
साकार करता...
बहुत ही प्यारी मधुर मधुर सी
है ये पंक्तिया..
बहुत सुन्दर मनभावन रचना...:-)
मेरे रचे बसे गाँव में
ReplyDeleteकुछ किसान..
पिछले कई सालों से
टूटे बर्तनों की
फसल बो रहे हैं.....
गूढ़ भाव ...
सुंदर पंक्तियाँ !
उन्मुक्त कामनाएं मुस्कुराती हैं तो ऐसी ही फसल लहलहाती है ..
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