सुख की पीड़ा में
खुशबू के तजुर्बे
मन के उजास की
परछाईं से
लबालब भरी
तुम्हारी बेतरतीब नींदें ...
तुम्हारे
निर्मोही सपने...
कुछ अधूरी
प्रेम कविताओं
जैसी तुम
सीने की ताप से
बनी आंच में...
जब यदा-कदा
दिख जाती हो ....
ठीक...
कच्चे घड़े की
मीठी महक जैसी...
बेतरतीब तुम
खिलखिलाती हुई
कुछ पल लेकर
मेरे हिस्से का
अपने घरौंदे में
डूब जाती हो...
ये जानकर भी...
अनंत नींदों में
डूबी...
कुछ अधूरी
प्रेम कविताएँ
दुःख की हथेली पर
महाकाव्य बन जाया करती है....
आत्मा की यायावरी
करते-करते
जब कभी
सरहदों के पार
उतरते हैं...
कच्चे घड़े की
मीठी महक जैसी...
बेतरतीब.... तुम
आह्लादिनी पुंज
राधा जैसी...
तुम........
दुःख की हथेली पर
बने महाकाव्य में
सवाल छोड़ जाती हो....
कृष्ण....
.चले जाओगे...?
राहुल
तुम........
ReplyDeleteदुःख की हथेली पर
बने महाकाव्य में
सवाल छोड़ जाती हो....
कृष्ण....
.चले जाओगे...?
आशा और उत्साह जगाती एक अनुपम कृति....!
वाह..............
ReplyDeleteकुछ अधूरी
प्रेम कविताएँ
दुःख की हथेली पर
महाकाव्य बन जाया करती है....
बेहद खूबसूरत!!!!
आप वाकई "दिल से" लिखते हैं.
अनु
सुन्दर अहसास लिए..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना..
Dil se....beautifull
ReplyDeleteदुःख की हथेली पर
ReplyDeleteबने महाकाव्य में
सवाल छोड़ जाती हो....
कृष्ण....
.चले जाओगे...?
सुंदर अभिव्यक्ति ...!!
मेरे दिल के हर कोने में
ReplyDeleteमहकती हो तुम
बनकर गंधक
क्या युही छाती रहोगी तुम
मेरे मन में आधारशिला बनकर .....
क्या खूब है आपकी यारी शब्दों से बहुत खूब राहुल दिल से
सुख की पीड़ा के बावजूद मीठी महक बसती है साँसों में..अधूरी सी लगती है कविताएं पर होती है पूरी..बस एक ज्वार..
ReplyDeleteरचना पसंद आयी , कुछ अलग स प्रभाव छोड़ने में समर्थ !
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