मेरे आसपास ...
घर के कोने में तुम्हारे
आने की आहट
आँख चुराती हुई
चुपके से जा बैठती है
अजनबी ख्वाब की डोर पर
मन पत्थर सा..
तेरे आगे अपलक है...
तुमने मेरी सदी के पन्नों पर
न लौटने के वादे किये थे....
कांच की बंदिश में
एकबारगी..एक सांस में
चूर कर देती हो..
शब्दों को
जो पल अपना साँझा था...
एक पल में हमसे बाँट लिया
नहीं रहा अपना कुछ भी
बेनाम सपनों को चुराए
सुबह का बेसुध पन्ना ..
समेट लेती हो...अपने साथ
तपती रात को अकेले
जीने के लिए...
हमने कभी याद दिलाया था
सदी के उसी पन्नों को
हाथों पर रखकर..
...अगर मिल गए
तेरे अजन्मे ख्वाब की डगर पर
तो मान लेना....
हजारों रातें...मुद्दतों और...
सौ जन्मों के फासले में
मिटते-मिटाते...
टूटते तारों की तरह
आ मिलेंगे
तेरे ही आँगन में...
राहुल...
आप किस पत्रिका के लिए लिखते हैं.. ? मैं आपको पढ़ती हूँ तो किसी और जहान में चली जाती हूँ ..
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
DeleteThis comment has been removed by the author.
Delete