अनाम मौसम सा
तेरा नाम
उमड़ते बादलों सा
तेरा चेहरा
कुछ पत्तियों के
आँख खुलने जैसी
तुम्हारी बातें...
अधखुली..अनकही
रोज बदलती तारीखों में
कोई एक दिन सा
अब भी होता है
मेरा दिन..
किश्तों में आते-जाते
बेपरवाह मौसम
नहीं जानते
आसपास.
तुम नही..
कभी नहीं..
रोज बदलती तारीखों में
बेमौसम
बरसती..
गुनगुनाती धूप
इतने कालचक्र को जीते
कहानियों में
नासमझ मन
जैसा होता है
अब भी मेरा बसंत..
राहुल
तेरा नाम
उमड़ते बादलों सा
तेरा चेहरा
कुछ पत्तियों के
आँख खुलने जैसी
तुम्हारी बातें...
अधखुली..अनकही
रोज बदलती तारीखों में
कोई एक दिन सा
अब भी होता है
मेरा दिन..
किश्तों में आते-जाते
बेपरवाह मौसम
नहीं जानते
आसपास.
तुम नही..
कभी नहीं..
रोज बदलती तारीखों में
बेमौसम
बरसती..
गुनगुनाती धूप
इतने कालचक्र को जीते
कहानियों में
नासमझ मन
जैसा होता है
अब भी मेरा बसंत..
राहुल
उत्कृष्ट कविता
ReplyDeleteकविता के साथ चित्र भी बहुत सुन्दर लगाया है
ऐसी बसंत .. बस मुस्कराहट आ गयी ..बसंती..
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