चौरास्ता के मंच पर सफेद जैकेट में गोजमुमो सुप्रीमो विमल गुरुंग, ममता बनर्जी व गौतम देव |
चौरास्ता में स्कूली बच्चों का रंगारंग कार्यक्रम |
रोबिन साहब के मुताबिक़ 2007 के पहले स्थिति काफी बदतर थी, जब हिल में सुभाष घिसिंग का बोलबाला था. हिल की अराजक स्थिति से लोग तंग आ चुके थे. सरकारी पैसे की लूटखसोट अपने चरम पर थी. कही भी एक रत्ती का काम नहीं हो रहा था. जीएनएलऍफ़ में विद्रोह का स्वर गूंजने लगा था.. उसी विद्रोह की चिंगारी से विमल गुरुंग नाम का एक शख्स निकला.. गुरुंग ने मौके की नजाकत को देखते हुए नई पार्टी का एलान कर दिया... गोजमुमो के अस्तित्व में आते ही घिसिंग और दार्जिलिंग गोरखा पार्वत्य परिषद् दुबकते चले गए.... आज हकीकत ये है कि दार्जिलिंग में विमल गुरुंग की मर्जी के बिना कुछ भी नहीं हो सकता.. गुरुंग की लोकप्रियता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन्हें नेपाल के सर्वॊच्च नागरिक सम्मान पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. आज मोर्चा सुप्रीमो गुरुंग के सामने भी हर तरह की चुनौतियां है.. गुरुंग की वेशभूषा को देखकर हर कोई यही कहेगा कि ये आदमी फिल्मों में दिखने वाला कोई तानाशाह या सरगना टाइप की चीज है..पर ऐसा है नहीं.. इसमें कोई संदेह नहीं कि गोजमुमो को मुकाम दिलाने में गुरुंग ने खूब मेहनत की है. पार्टी की केंद्रीय समिति और संगठन में गुरुंग की ही चलती है. गोजमुमो के महासचिव रौशन गिरी की भी चर्चा करना यहाँ जरुरी है.. आप इन्हें गोजमुमो का थिंक टैंक कह सकते हैं. इसके अलावा गोजमुमो का एक स्टडी फोरम भी है, जिसमें कुछ दिग्गज लोग पर्दे के पीछे रणनीति बुनते रहते हैं. इस स्टडी फोरम में आर्मी के सेवानिवृत ऑफिसर व अन्य महारथी शामिल हैं.
पिछले एक साल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नॉर्थ बंगाल समेत दार्जिलिंग का १२-१३ बार दौरा किया.. खासकर अगस्त-२०१२ में जीटीए (gorkhaland territorial administration ) बनने के बाद ममता ने इन इलाकों के लिए कई तरह के आर्थिक पैकेज की घोषणा की.. दरअसल मुख्यमंत्री बनने के बाद ही ममता बनर्जी ने गोरखालैंड और नार्थ बंगाल में फिर से उठ रहे राजनीतिक भूचाल को शांत करने के लिए कई अहम् फैसले लिए..
जीटीए बनने से पहले ममता बनर्जी जानती थी कि सालों से की जा रही गोरखालैंड की मांग को लेकर कुछ कूटनीतिक फैसले लेने ही होंगे...वही हुआ भी..
वे जब भी दार्जिलिंग आतीं, उसे कवर करने की जिम्मेवारी मेरे सिर पर होती.. मेरे साथ अक्सर मेरे फोटो जर्नलिस्ट पुलक कर्मकार/अजय साहा होते.. नॉर्थ बंगाल में ममता बनर्जी के एक ख़ास मंत्री हैं ...गौतम देव... नॉर्थ बंगाल उन्नयन विकास मंत्रालय का प्रभार इन्ही के पास है.. मीडिया के भाई-बंधुओं को लाने-लेजाने का पूरा इंतजाम गौतम देव ही करते.. हालांकि हम अपने ऑफिस की व्यवस्था पर ही ज्यादा निर्भर करते, पर ममता के काफिले में हमें भी शामिल होना पड़ता.. दरअसल कोई नहीं जानता कि सिलीगुड़ी से दार्जिलिंग की ओर निकलने के बाद उनका कारकेड कहाँ रूक जाएगा ?... सड़कों के किनारे खड़ी महिलायें, बच्चे ममता की एक झलक पाने को उमड़ पड़ते... ऐसे में निश्चित तौर पर वे गाड़ी से उतर कर सबसे मिलती-जुलती...अगर आसपास उन्हें कोई दुकान दिख गया तो चॉकलेट खरीद कर बच्चों में बांटने से वे अपने को रोक नहीं पातीं.. मैंने उन्हें काफी करीब से देखा है ये सब करते हुए... राजनीतिक ताने-बाने से अलग होकर अपने नाम के हिसाब से वे भीड़ में शामिल हो जातीं और बच्चों को गोद में उठाकर दुलार-प्यार करतीं. तब मैं उनके चेहरे को पढ़ने की कोशिश करता. एक साथ कई रंग उभरते...अग्निकन्या के इस अवतार को देख मैं मुग्ध हो जाता.. उन्होंने कभी भी धूप, बारिश, बेमेल मौसम व सुरक्षा प्रोटोकॉल की परवाह नहीं की. उनके साथ चलने वाले सुरक्षा दस्ते को सब कुछ संभालने में काफी मशक्कत करनी पड़ती... फिर भी वे निडर, निर्भीक, दिलेर शेरनी की तरह चलती.
उनका रात्रि प्रवास दार्जिलिंग के रिचमंड होटल में ही होता.. बाकी का कुनबा सर्किट हाउस में टिकता...मीडिया गैलरी में अक्सर उनके भाषण को लेकर पत्रकारों के बीच खूब बहस चलती.. ममता बनर्जी ने कभी भी अपने भाषणों में गोल-मोल या समझौतावादी रूख नहीं अपनाया. उनके भाषणों या घोषणाओं को लेकर अंग्रेजी के कुछ पत्रकार वेदर फोरकास्ट की तरह तरह-तरह के कयास लगाते और अगले ही पल बैकफुट पर आ जाते... दार्जिलिंग के डीएम डॉ. सौमित्र मोहन जो मूल रूप से पटना के ही रहने वाले हैं, वे ममता के ख़ास व पसंदीदा लोगों में से एक माने जाते हैं.. डॉ. मोहन सब चीजों पर बारीकी से नजर रखते... वे डीएम के अलावा जीटीए के मुख्य सचिव भी हैं.. ममता के दार्जिलिंग दौरे पर आते ही हिल की राजनीति में सरगर्मी आ जाती व गोरखालैंड की आवाज उठने लगती..जबकि हर कोई ये जानता था कि जीटीए बनने के बाद ये फिलहाल सम्भव नहीं है.. मगर विरोधी दल गोजमुमो पर दबाव बनाने से बाज नहीं आते.. खैर..
चौरास्ता के मंच से ममता बनर्जी जब अपना भाषण शुरू करतीं तो अपने अंदाज में लहराते हुए सब कुछ कह जातीं. मिली-जुली हिंदी और बांगला में उनका संबोधन काफी धाराप्रवाह होता..एक दिलचस्प घटना का जिक्र करना चाहूँगा..अभी जनवरी 2013 में जब वे दार्जिलिंग दौरे पर आयीं थी तो चौरास्ता के मंच पर उनका भाषण हो रहा था. मैं मंच के ठीक सामने एसबीआई एटीएम के पास खड़ा था.. जबकि मेरे फोटो जर्नलिस्ट मंच के पास खड़े थे..काफी भीड़ थी और तिल रखने की भी जगह नहीं थी. मंच पर तृणमूल कांग्रेस समेत गोजमुमो के कई नेता भी मौजूद थे. इसके साथ ही विमल गुरुंग भी ठीक ममता के पास ही बैठे थे. ममता के भाषण के दौरान ही मोर्चा कार्यकर्ताओं ने वी वांट गोरखालैंड का नारा लगाना शुरू कर दिया..थोड़ी देर देखने-सुनने के बाद ममता बनर्जी ने मंच से ही सभी को डपटते हुए कहा कि- तुम सब शांत हो जाओ... ये तुम्हारी पार्टी का कार्यक्रम नहीं है, जो इतना शोर मचा रहे हो... बंग भंग होबे ना..मतलब होबे ना ....ममता के इतना दहाड़ते ही पूरी भीड़ को सांप सूंघ गया.. इसके बाद ममता ने डॉ. सौमित्र मोहन को बुलाकर कुछ कहा और तुरंत ही मंच से उतर गयीं.. किसी को कुछ समझ में नहीं आया कि आखिर मुख्यमंत्री को क्या हो गया ? भीड़ अस्तव्यस्त हो गयी और शोरगुल मचने लगा. काफी मुश्किल से विमल गुरुंग ने लोगों को शांत कराया. किसी तरह मैंने सौमित्र मोहन से पूछा तो उन्होंने बताया कि मैडम कालिम्पोंग के लिए निकल रही हैं... अब यहाँ नहीं रुकेंगी.. और दस मिनट में उनका कारकेड कालिम्पोंग के लिए निकल गया..उनके इस कदम पर गोजमुमो और तमाम विपक्षी पार्टियों ने पानी पी-पी कर उन्हें कोसना शुरू कर दिया...अखबारों और टीवी चैनलों में उक्त फुटेज और बाईट दिखाकर उनकी खूब आलोचना की गयी.. सबको एक मौका मिल गया था. जबकि ममता ने कालिम्पोंग पहुंचकर कई गुम्पाओं (बौद्ध मठ) के दर्शन किये और अगले दिन कोलकाता के लिए रवाना हो गयीं...इस दौरान उन्होंने एक शब्द का भी बयान नहीं दिया..
इसके पहले नवम्बर के महीने में जब वे कालिम्पोंग दौरे पर आयीं थी तो मुझे उनका एक और रूप देखने को मिला था. वे कालिम्पोंग के डेलो गेस्ट हाउस में रुकी थीं.. मैं अपने कालिम्पोंग रिपोर्टर मुकेश शर्मा के साथ डेलो गेस्ट हाउस के बाहर ही घूम रहा था. हमारे साथ कई और भाई-बन्धु भी थे. मुख्यमंत्री दिन भर अपने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक में व्यस्त रही थीं. शाम होने के बाद ठंडक बढ़ते ही सबकी हालत ख़राब होने लगी थी. गेस्ट हाउस में ही कुछ पार्टी नेताओं द्वारा ममता के लिए लॉन में पारंपरिक नृत्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया था.. हम सब थोड़ी दूर पर खड़े होकर गपशप कर रहे थे. दरअसल तयशुदा कार्यक्रम के मुताबिक़ वे प्रेस को ब्रीफ करने वाली थीं.. अन्दर से जानकारी ये मिल रही थी कि काफी वर्षों से लंबित लेप्चा डेवलपमेंट काउन्सिल के गठन को लेकर कुछ अहम् घोषणा करने वाली हैं... हम सब उसी का इन्तजार कर रहे थे, जबकि लेप्चा व तिब्बती महिला कलाकारों का डांस शुरू हो चुका था.. दो-तीन मिनट के अन्दर ही ममता गले में शॉल लपेटे और हाथों में ऐपल का टेबलेट लेकर बाहर निकलीं. बिना किसी से बात किये हुए वे डांस कर रही लड़कियों की टेबलेट से तस्वीर उतारने में मशगूल हो गयीं..मैंने देखा कि काफी ठण्ड होने के बाद भी उस वक़्त उनके पैरों में सिर्फ हवाई चप्पल ही था.. ठीक अपनी आदत के मुताबिक़.... काफी देर तक हम सब इसी मंजर को देखते रहे... कभी वे डांस करती लड़कियों के घेरे के बीच पहुँच जातीं तो कभी गेस्ट हाउस की सीढ़ियों पर बैठ जातीं.. पर उनका टेबलेट हमेशा ऑन रहा...इस दौरान वे काफी आत्मीय और निश्चल मुस्कान के साथ सभी से पेश आयीं. आखिरकार उन्होंने प्रेस को ब्रीफ नहीं किया... जानकारी मिली कि अब वो सुबह में बात करेंगी..अगले दिन उन्होंने सुबह 9 बजे प्रेस को ब्रीफ किया और लेप्चा संगठनों के नेताओं के बीच कहा कि अगले कैबिनेट की बैठक में लेप्चा डेवलपमेंट काउन्सिल के गठन के लिए प्रस्ताव लाया जाएगा. हिल की राजनीति में ये एक महत्वपूर्ण खबर थी, जिसका सभी को इन्तजार था..थोड़ी देर पार्टी नेता व अन्य स्थानीय संगठनों के प्रतिनिधियों से मिलने के बाद उनका कारवां सिलीगुड़ी के लिए रवाना हो गया.. हम सब भी उनके पीछे-पीछे आ रहे थे...तीस्ता नदी का मनोहारी और भव्य नजारा दिखने लगा था.. तीस्ता अपने खतरनाक तेवर के साथ प्रवाहित हो रही थी... रानीपुल से थोड़ा आगे बढ़ने के बाद एक बार फिर उनका काफिला रुका.. सब लोग हैरत में कि अब क्या हो गया ? हम सब भी अपनी गाड़ी से उतर कर थोड़ा आगे बढ़े और जो नजारा दिखा, वो काफी हैरतंगेज था. एक बार फिर मैडम अग्निकन्या अपने टेबलेट के खिलौने के साथ तीस्ता को कैद करने में मशरूफ दिखीं... अलग-अलग कोणों से उन्होंने खूब तस्वीर उतारी... जबकि कुछ टीवी चैनल के कैमरामैन उनके इस प्रकृति प्रेम को अपने कैमरे में कैद करते दिखे.. वहीँ तमाम सुरक्षा ऑफिसर आसपास मुस्तैदी से डटे रहे... करीब 15 मिनट तक उन्होंने तीस्ता की मचलती अदाओं को अपने टेबलेट में समेटा और वहां से विदा हो गयीं......
क्रमश ....
दार्जिलिंग के घाटी का सुंदर प्रस्तुतिकरण!!साथ में ममता बनर्जी के क्रियाकलाप भी....
ReplyDeleteदार्जलिंग यात्रा का मनमोहन चित्रण, मन को छूता हुआ
ReplyDeleteबधाई
आग्रह है पढ़ें "अम्मा"
बहुत ही सुन्दर वर्णन
ReplyDeleteसाभार!
दार्जलिंग की पोलिटिक्स के साथ मनोरम जगहों का भी अच्छा वर्णन है इस संस्मरण में ...
ReplyDeleteवैसे गोजमूमो और ममता दोनों जम रहे हैं ...
sundar yatra vritant !
ReplyDeleteबंगाल की राजनीति और वहां की मुख्यमन्त्री सहित अनेक अन्य जानकारियों और सम्बद्ध विषयों की अच्छी पड़ताल करता संस्मरण। बेहद रोचक।
ReplyDeleteदार्जीलिंग के राजनीतिक माहौल और ममता के इस दूसरे अग्नि-इतर रूपों के बारे में जानकार अच्छा लगा. अगले पोस्ट का इंतज़ार रहेगा. ब्लॉग का नया रूप अच्छा लगा.
ReplyDeleteपुरानी यादें ताज़ा करने के लिए शुक्रिया और आभार
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें
बढ़िया वृतांत ...
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ....
ReplyDeleteगजब का यात्रा वर्णन और साथ में अपना मौलिक संस्मरण लिखते हो
ReplyDeleteभाई जी
ऐसा लगता है दार्जलिंग की चौराहे में खडे हैं
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
सजीव दिल चस्प रोचक विवरण बढ़िया चित्रांकन .
ReplyDeleteजीवंत चित्रण .. ममता बनर्जी की फोटोग्राफी के शौक से विदित हुई.. सादर
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ReplyDelete"दार्जिलिंग डायरी २" अग्नि कन्या के जीवन का सारल्य चुपके से उकेर गई .अन्तरंग झांकी लेफ्टियों की चाची की देखने को मिली .आभार इस कसावदार रिपोर्ताज के लिए .ॐ शान्ति .
nice post
ReplyDeleteशुक्रिया राहुल भाई आपके टिपण्णी का .ॐ शान्ति .
ReplyDeleteवाह भाई जी गजब का चित्रण
ReplyDeleteबहुत सुंदर
Bahut Sundar.
ReplyDeleteममता बेनर्जी के साथ ...सुन्दर दार्जिलिंग वर्णन ...!!उन्हें प्रकृति से प्रेम है तभी वो पेंटिंग भी सुन्दर करती हैं ....!!
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