...अब चौरास्ता की आपाधापी से बाहर निकलते हैं... दार्जिलिंग में कई ऐसी जगह है, जहाँ जाने के बाद आपको कुछ ख़ास व संतोषजनक न लगे..अगर आपने पहले से पता नही किया तो गाड़ी वाले आपको खूब चकमा देंगे... सेवन पॉइंट घूमाने के नाम पर वे आपसे मनमाने पैसे वसूल लेंगे.. चाय बागान दिखाने के बदले वे ऐसी जगह ले जायेंगे, जहाँ कुछ भी नहीं होता...
सिंघमारी में रोपवे से घूमना निश्चित तौर पर एक रोमांचक अनुभव का एहसास कराता है.. प्रसिद्ध संत जोसफ स्कूल जहाँ हमेशा हिंदी व बांग्ला फिल्मों की शूटिंग चलती रहती है, के अलावा पद्मजा नायडू जूलोजिकल पार्क, तिब्बती शरणार्थी कैम्प, गोरखा स्टेडियम व बौद्ध मठ, ये कुछ ख़ास जगह है दार्जिलिंग की...
पद्मजा नायडू जूलोजिकल पार्क में पूरी दुनिया से टूरिस्ट आते हैं सिर्फ एक चीज को देखने को, और वो है लुप्तप्राय प्रजाति का रेड पांडा... रेड पांडा यहाँ के अलावा और कहीं नहीं आपको दिखाई देगा... इसेक साथ ही हिमालयन रेंज के कुछ अति दुर्लभ वन्य प्राणियों को आप यहाँ देख सकते हैं...इस जूलोजिकल पार्क में जीव जंतुओं के साथ पर्वतारोहण से जुड़ा एक संग्रहालय भी है.. यहाँ पर आपको पर्वतारोहण के बारे में बेहद ही दिलचस्प किस्म की जानकारी मिलेगी....इसके अलावा यहाँ से कुछ दूरी पर सिंगालीला नेशनल पार्क है.....आप वहां भी घूम सकते हैं....टॉय ट्रेन में सफ़र के बिना दार्जिलिंग में सैर-सपाटे की चर्चा हमेशा अधूरी रहेगी..बच्चों का तो ये मनपसंद ड्रीम है ही... इस टॉय ट्रेन के न जाने कितने किस्से फिल्मों और कहानियों में गढ़े गए, पर आज टॉय ट्रेन वाकई टूरिस्टों को उस तरह से सैर करा पाता है ? जवाब होगा - नहीं.... जून 2009 के पहले तो काफी हद तक मामला ठीक ठाक था... तब टॉय ट्रेन न्यू जलपाईगुड़ी से चलकर सिलीगुड़ी जंक्शन, सुकना, रंगतंग, तीनधरिया, गयाबारी, महानदी, कर्सियांग, टंग, सोनादा व घूम होते हुए दार्जिलिंग पहुँचती थी..मगर चार साल पहले रंगतंग और तीनधरिया के बीच पाग्लाझोड़ा में भारी भूस्खलन होने के कारण लगभग 200 मीटर रेल ट्रैक गहरी घाटी में बैठ गयी.. तब से लेकर अब तक टॉय ट्रेन की सेवा बाधित है.. अब यह ट्रेन सिर्फ सिलीगुड़ी जंक्शन से रंगतंग तक और इधर दार्जिलिंग से कर्सियांग तक जाकर लौट आती है... नॉर्थ फ्रंटियर व दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे के आलाधिकारी चाहे जितनी कोशिश कर लें, पर करोड़ों खर्च कर भी उक्त जगह पर फिलहाल रेल ट्रैक नहीं बना पायेंगे... हकीकत में पाग्लाझोड़ा की भौगोलिक दशा भूस्खलन से बेहद ही खराब हो गयी है...
मेरे ख्याल से दार्जिलिंग में अगर सबसे ज्यादा आकर्षित करने वाली कोई जगह है तो वो है टाइगर हिल...सूर्योदय का बिहंगम और रोमांचक नजारा देखने के लिए जिस तरह से देशी-विदेशी पर्यटकों की भीड़ टूटती है, वो काफी अलहदा होता है... इसके साथ ही सूर्य की नवजात किरण जब कंचनजंघा की सफ़ेद संगमरमरी चोटियों पर पड़ती है तो बस सब कुछ खामोश हो जाता है..वो पल थम सा जाता है... दार्जिलिंग आने के बाद टाइगर हिल या फिर दूर जगहों पर जाने के लिए मैं अपने दो ड्राइवर दोरजी तमांग और रणजीत शर्मा की सेवा लेता था.. दोरजी तमांग मूल रूप से गोरखा है और दार्जिलिंग का ही रहने वाला है .. वह गप करने में खूब माहिर है..उसकी एक खूबी और है.. वह बहुत सुन्दर तरीके से मैथिली भाषा में बातचीत करता है... जबकि रणजीत शर्मा का पुश्तैनी घर बिहार के वैशाली जिले में जन्दाहा के पास है... लेकिन अब वो पूरी तरह से दार्जिलिंग में ही बस गया है ...जहाँ एक तरफ दोरजी तमांग के पास आल्टो कार है, वहीँ दूसरी ओर रणजीत के पास टवेरा है... पर दोनों के ड्राइविंग स्किल्स बेहद ही अलग-अलग है... जब मैं पहली बार दार्जिलिंग गया था तो रणजीत ही मुझे सब जगह ले गए थे. उसी समय से हमारी उनसे जान-पहचान हो गयी थी..बाद के दिनों में भी हम उनकी गाड़ी रिज़र्व कर दूर-दराज आते-जाते रहते..चौक बाजार की भीड़-भाड़ से लेकर दुर्गम घाटियों और खतरनाक सड़कों पर गाड़ी चलाते हुए मैंने रणजीत को काफी करीब से देखा.. मुझे याद आ रहा है कि एक बार जामुने जाने के दौरान किस तरह उन्होंने एक बाइक सवार को बचाया था.. संयोग से हमारी गाड़ी के पीछे कोई गाड़ी नहीं थी, अगर पीछे से जरा सा भी धक्का लग जाता तो हम सब हजारों फीट खाई में डूब जाते... मगर रणजीत की सूझ-बूझ से अनहोनी टल गयी थी..
नवम्बर के महीने में जब दार्जिलिंग से दूर गोरूबथान नामक एक जगह पर गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का वार्षिक सम्मेलन कवर करने के लिए गया था तो रणजीत शर्मा ही वहां ले गए थे.. काफी खतरनाक रास्तों से होते हुए वहां पहुंचे थे.. मुझे थोड़ा डर भी लगा था, जबकि हमारी हालत देखकर रोबिन साहब मुस्कुरा रहे थे. वहीँ रणजीत काफी निश्चिंत होकर इलाके के बारे में बता रहे थे...
अब जरा दोरजी तमांग की चर्चा हो जाए..वो 4 अगस्त का दिन था और जीटीए का शपथ ग्रहण समारोह कवर करने मैं दार्जिलिंग पहुंचा हुआ था... शपथ ग्रहण समारोह के बाद मैंने 5 अगस्त को रोबिन के साथ अगले दिन टाइगर हिल जाने का प्रोग्राम बनाया.. रणजीत से बात करने पर पता चला कि उसे कुछ विदेशी टूरिस्टों को लेकर अगले दिन गंगटोक जाना है ... ऐसी स्थिति में समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए ? मैंने रणजीत से ही कहा कि कोई ठीक-ठाक ड्राइवर व गाड़ी हो तो बात कीजिये... दो-तीन दिनों से खूब बारिश हो रही थी.. शपथ ग्रहण के बाद ठीक शाम के वक़्त चौक बाजार में बाटा शोरूम के सामने मैं और रोबिन पकौड़े का आनंद ले रहे थे... तभी रणजीत दोरजी को लेकर मेरे पास आये और बताया कि कल टाइगर हिल जाने का कितना पैसा लोगे ? वे दोनों नेपाली भाषा में बात कर रहे थे.. अंत में मामला 700 में तय हुआ.. जब दोरजी को ये पता लगा कि मेरा घर पटना है तो उसने कहा कि ओ भाई, मेरे घर के बगल में भी तो एक झा जी रहते हैं, जो बिहार के हैं... उसके बाद तो दोरजी मैथिली में ही बोलने लगा, जबकि मैं टूटी-फूटी ही मैथिली जानता था.. रोबिन साहब ने मुझसे पूछा कि ये कौन सी भाषा है, तब मैंने कहा कि मैथिली एक मीठी मगर दिलफरेब भाषा है... मेरी बात को बिना समझे ही अपनी आदत के मुताबिक़ उन्होंने राईट-राईट कहा... उसी वक़्त ये तय हुआ कि सुबह साढ़े तीन बजे दोरजी पहले रोबिन साहब के घर जाएगा, उसके बाद वो मेरे गेस्ट हाउस आएगा .. हालांकि न चाहते हुए भी रोबिन साहब मेरी जिद के कारण साथ चलने को तैयार हो गए थे ..दोरजी ने बताया कि सुबह चार बजे यहाँ से निकलना होगा..और आप अपना फ़ोन नंबर दे दीजिये... मैं सुबह में कॉल कर दूंगा.. मैंने कहा, ठीक है.. थोड़ी देर में रोबिन अपने घर चले गए, और मैं अपने गेस्ट हाउस आ गया..मैंने शपथ ग्रहण समारोह की रिपोर्ट जल्दी से तैयार कर मेल कर दिया..उसके बाद रात में फिर एक बार बाहर निकला. भारी बारिश के कारण पूरा दार्जिलिंग पानी में सराबोर हो गया था... ठण्ड भी काफी बढ़ गयी थी.. ऐसी स्थिति में उससे बचने के लिए मेरे पास सिर्फ एक ही जैकेट था.. मुझे लगा कि इससे तो काम चलेगा नहीं.. दार्जिलिंग में कोई भी मौसम हो, अगर बारिश हो गयी तो ठण्ड का हाल पूछिए मत... गेस्ट हाउस लौटने के बाद मैंने सोचा कि रात में यहाँ तो कोई दिक्कत नहीं है, पर सुबह चार बजे तो ठण्ड से जान ही चली जायेगी..एक मन हुआ कि टाइगर हिल का प्रोग्राम रद्द कर दें, फिर सोचा कि चलो देखते हैं, जो होगा सो होगा... खैर...रात में सोने से पहले मैंने भी अपना अलार्म लगा दिया..
सुबह ठीक चार बजे दोरजी ने मुझे फ़ोन किया... मैंने कहा, कहाँ हो ? दोरजी बोल मैं आपके गेट पर हूँ भाई.. आप बाहर निकालिए... मैंने कहा-रोबिन साहब हैं न गाड़ी में... तो उसने कहा- हाँ जी... वो बैठे हैं गाड़ी में... मैं तब जल्दी से रूम का ताला बंद कर बाहर निकला.. थोड़ी सी बूंदाबांदी हो रही थी.. गेट से बाहर निकल कर गाड़ी के पास पहुंचा तो देखा कि रोबिन साहब एक अजीब रंग के जैकेट में खुद को लपेट-सपेट कर पीछे की सीट
पर बैठे हैं ... उन्हें देखकर मुझे थोड़ी सी हंसी आ गयी...वे कुछ-कुछ भालू की तरह दिख रहे थे.. मैं आगे की सीट पर बैठा... दोरजी ने गाड़ी आगे बढ़ाई... रोबिन से बात करने के लिए मैं पीछे मुड़ा... बंद गाड़ी में कुछ अजीब किस्म की महक तैर रही थी..तो बात समझते देर न लगी.. उन्होंने अपनी दिनचर्या की बोहनी कर दी थी.... मैंने कहा-क्या रोबिन साहब ? अभी इस वक़्त ..... बात आई-गयी हो गयी... दोरजी की सफ़ेद रंग की आल्टो कार कीचड़ और पानी भरे सड़कों पर आगे बढ़ती जा रही थी... दार्जिलिंग रेलवे स्टेशन से आगे बढ़ने के बाद तो गाड़ियों का काफिला देख मैं दंग रह गया... चमचमाती हेडलाइट्स में कुछ अजीब रफ़्तार से गाड़ियां दौड़ रही थी.. बारिश व सड़कों की हालत उतनी ठीक न होते भी सभी गाड़ियां एक दूसरे को पीछे छोड़ती हुई भागी जा रही थी... ऐसे में दोरजी भला कहाँ पीछे रहने वाला था.. ? उसने अपनी आल्टो को ऐसी रफ़्तार दी कि बस..... मैंने दोरजी से कहा कि ऐसा लोग क्यों कर रहे हैं ? अभी तो बहुत समय है सनराइज में .. दोरजी ने बताया कि बात वो नहीं है... टाइगर हिल में गाड़ियों की पार्किंग बड़ा प्रॉब्लम है जी... अगर आप लौटते हुए फंस गए तो .....दोरजी की बात समझ में नहीं आई... करीब आधे घंटे के बाद घुमावदार चढ़ाई भरे रास्तों से जब टाइगर हिल पहुंचे तो चारों तरफ अँधेरा था और काफी भीड़ लगी हुई थी...दोरजी ने गाड़ी पहले ही रोक ली और कहा कि मैं यहीं पर रहूँगा.....टिकट कटाने के बाद रोबिन मुझे एक दूसरे रास्ते से ऊपर ले गए... मुझे अब एहसास हो रहा था कि ठण्ड अन्दर से चुभ रही है... ऊपर जाने के बाद काफी संख्या में विदेशी टूरिस्ट नजर आये... रोबिन साहब ने कहा कि अभी तो बादल नहीं है..पर कोई जरूरी नहीं...कि सनराइज दिखे... वैसे आज लगता है कि सनराइज दिख जाएगा..
सारे लोग उस हसीन मंजर का इन्तजार कर रहे थे... मेरी भी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी...सनराइज देखने से पहले ही लोग रोमांच में पागल हुए जा रहे थे.. जैसे-जैसे सनराइज का समय नजदीक आ रहा था, वैसे-वैसे आसमान की रंगत बदल रही थी.. सच कहा जाए तो उस पल का वर्णन नहीं किया जा सकता है... थोड़ी देर में ही सूर्य की मासूम सी किरण पहाड़ों को चूमने लगी... कंचनजंगा की चोटी पर मानो जैसे स्वर्ण कलश बैठा दिया गया हो... जैसे-जैसे रौशनी फ़ैल रही थी, वैसे-वैसे प्रकृति अपना दामन दूर तक बढ़ा रही थी....एकदम दिलकश..... तब मुझे लगा कि दार्जिलिंग में इससे ज्यादा बढ़िया टूरिस्ट स्पॉट कुछ भी नहीं है.....
वहां से निकलने के बाद मैं और रोबिन जल्दी से नीचे आये और दोरजी को फ़ोन किया... कुछ ही देर में वह गाड़ी के पास पहुंचा और जल्दी से बैठने को कहा..वह काफी तेजी से गाड़ी चला रहा था... मैंने कहा, दोरजी थोड़ा धीरे चलो... पर वो कहाँ सुनने वाला था ? वो अपनी धुन में था.. रोबिन साहब ने कहा कि जब आप यहाँ आये हैं तो बताशे भी चलिए, उसे देख लीजिये... मुझे उसके बारे में जानकारी थी, पर वहां पहले नहीं गया था. बतासी यानी टॉय ट्रेन का लूप लाइन सेंटर, एक खूबसूरत पार्क और गोरखा शहीदों का स्मृति स्थल.. वहां पहुँचते ही मैंने देखा कि धूप थोड़ी और खिल गयी है और कंचनजंगा अपने पूरे रंग में है... रोबिन वहीँ पार्क की एक बेंच पर बैठ गए और मैं पार्क के चारों तरफ टहलने लगा.. वहां से दार्जिलिंग का मनमोहक नजारा साफ़-साफ़ दिख रहा था..गनीमत थी कि बारिश बिलकुल ही बंद हो गयी थी, नहीं तो सार जतन बेकार जाता...बहरहाल, बतासी घूमकर जब वहां से निकले तो चाय स्टाल देख कर रहा नहीं गया...दस रुपए में चाय और बीस में कॉफी... मैंने रोबिन से कहा कि चाय पी लेते हैं... रोबिन ने हामी भरी.. वहां पर काफी भीड़ लगी हुई थी.. दरअसल टाइगर हिल से लौटते हुए लगभग सभी टूरिस्ट बतासी जरूर आते हैं .... चाय की पहली सिप लेते ही मन पूरी तरह कसैला हो गया... मैंने चाय वाले से कहा- ये कौन सी चाय है ? ये तो एक रुपए में भी महँगी है... चाय वाले ने कहा-यहाँ यही मिलेगा ..... समझ गया कि जिसको जहाँ मौका मिलता है ...बस लूट लेता है... मेरे साथ कई और लोग भी उससे उलझ गए... पर वही बेशर्म सा जवाब... तो ये दार्जिलिंग का हाल है...... ?? खैर किसी तरह वहां से छूटने के बाद जब चौक बाजार से थोड़ा पहले गोयनका पेट्रोल पंप के पास पहुंचे तो दोरजी ने वही किया, जिसका मुझे डर था. उसने तेजी से गाड़ी बढ़ाने के चक्कर में एक मारुति वैन को पीछे से धक्का मार ही दिया...मारुति का ड्राइवर भी गोरखा ही था... दोनों आपस में भिड़ गए..पर किसी तरह रोबिन ने मामले को सुलझाया....
आखिरकार जब हमदोनों गेस्ट हाउस पहुंचे तो ढंग की चाय नसीब हुई...थोड़ी देर की गपशप के बाद रोबिन साहब अपने घर चले गए.. मैंने दोरजी को पैसे देकर विदा किया और फ्रेश होने चला गया... उसी दिन मुझे सिलीगुड़ी भी लौटना था...
क्रमश...
सूर्य की मासूम सी किरण पहाड़ों को चूमने लगी... कंचनजंगा की चोटी पर मानो जैसे स्वर्ण कलश बैठा दिया गया हो... जैसे-जैसे रौशनी फ़ैल रही थी, वैसे-वैसे प्रकृति अपना दामन दूर तक बढ़ा रही थी..
ReplyDeleteअनुपम प्रस्तुति ...
मज़ा आ गया भाई पोस्ट पढ़कर | अब तो दार्जीलिंग जाने का दिल कर रहा है |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत उम्दा,लाजबाब दार्जिलिंग यात्रा प्रस्तुति,,आभार
ReplyDeleteRecent post: ओ प्यारी लली,
बहुत बढ़िया वृतांत....
ReplyDeleteभौगोलिक,राजनैतिक,पहाड़ियों की मानसिकता,प्रकृति से लेकर देशभक्ति तक...सारे रस हैं इस आलेख में...
आनंद आया...
अनु
आपके दार्जिलिंग डायरी को पढ़ते पढ़ते मैं दुबारा दार्जिलिंग पहुँच गयी.बहुत बढ़िया आलेख !
ReplyDeleteपढना शुरू किया तो शुरू से अंत तक बाँधा हुआ रहा. पता नहीं कब ..क्रमशः आ गया. आपके शब्दों के साथ दार्जीलिंग पुर-रंग जेहन में उतरता रहा. कुछ वर्षों पहले एवेरेस्ट के बारे में पढ़ा था. उन किताबों में भी कंचनजंगा के खूबसूरती की खूब तारीफ लिखी हुई थी. अब मन में उत्कट इच्छा है देखने की. पहाड़ी रास्तों की ड्राइविंग के बारे में सोच के के मन सिहर जाता है. यहाँ पड़ोस के राज्य टेनेसी के पहाड़ी इलाकों में मैंने ड्राइविंग की है और उस अनुभव से बस सोच सकता हूँ की दार्जीलिंग में ड्राइविंग करना कितना दुष्कर होगा. ये जानकर आश्चर्य हुआ की दोरजी दार्जीलिंग का हो के भी मैथिली बोल पाता है. मेरा मानना था की किशनगंज के बाद मैथिली नहीं बोली जाती.
ReplyDeleteअगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा.
अत्यंत सुन्दर ..नैनाभिराम नजारा..
ReplyDeleteसूर्य के स्वर्ण कलश आपने देखा पर लगा जैसे कि हमने देखा। ठण्ड और कड़वी चाय से आपको निजात मिली, यह बात अच्छी रही। बहुत बढ़िया यात्रा संस्मरण।
ReplyDeleteबड़ी सुंदर विस्तृत जानकारी दार्जिलिंग के बारे में.
ReplyDeleteहिमाछिद पहाड़, रोपवे ...
ReplyDeleteऔर इतना विस्तृत लेखन ... सच में सैर हो गई आपके साथ ...
sundar yatra-vritant....photos bhi khoobsurat hai!
ReplyDelete
ReplyDelete.बहुत सुन्दर प्रस्तुति .बधाई . . हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
BHARTIY NARI .
एक छोटी पहल -मासिक हिंदी पत्रिका की योजना
बहुत बढ़िया वृतांत लाजबाब दार्जिलिंग यात्रा प्रस्तुति......जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ
दार्जिलिंग वाकई बहुत खुबसूरत जगह है और कंचनजंघा से सटे होने के कारण और भी ज्यादा
ReplyDeleteसुन्दर यात्रा वर्णन
सादर आभार!
शानदार यात्रा का शानदार वर्णन
ReplyDeleteआपकी लेखनी स्थान को सजीविता प्रदान कर देती है
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई