तुम्हें बार-बार दिखेगा
बीहड़ उम्मीदों जैसा
नील लोहित का रंग ...
अब तक तुम
इस संगीन शब्द को
दूर रखते आये हो
मुझसे बहुत दूर ...
थोड़े से बहरे सपनों की
उलझी किताबों को
पढ़ते-ऊंघते
जरूर दिखेगा
नील लोहित का रंग...
अधम जिस्म पर
बिखरी-सिमटी बेलें
चेतनशून्य मन के
पन्नों को
नोचते-खसोटते
मुझसे ही
अलग करते आये हो ..
तब भी
तुम्हें दिखेगा
नील लोहित का रंग...
मुझे ले चलो
कच्ची मिट्टी से बने
आखिरी रास्ते के पास,
शून्य पर टिमटिमाती
मेरी धरती के पास
मुझे ले चलो
गुमसुम पानी से बने
मेरे शब्दों के पास
थोड़ी सी बची हुई
जमा पूँजी के पास
मुझे ले चलो
तुम्हें दिखेगा
नील लोहित का रंग ...
बीहड़ उम्मीदों जैसा
नील लोहित का रंग ...
अब तक तुम
इस संगीन शब्द को
दूर रखते आये हो
मुझसे बहुत दूर ...
थोड़े से बहरे सपनों की
उलझी किताबों को
पढ़ते-ऊंघते
जरूर दिखेगा
नील लोहित का रंग...
अधम जिस्म पर
बिखरी-सिमटी बेलें
चेतनशून्य मन के
पन्नों को
नोचते-खसोटते
मुझसे ही
अलग करते आये हो ..
तब भी
तुम्हें दिखेगा
नील लोहित का रंग...
मुझे ले चलो
कच्ची मिट्टी से बने
आखिरी रास्ते के पास,
शून्य पर टिमटिमाती
मेरी धरती के पास
मुझे ले चलो
गुमसुम पानी से बने
मेरे शब्दों के पास
थोड़ी सी बची हुई
जमा पूँजी के पास
मुझे ले चलो
तुम्हें दिखेगा
नील लोहित का रंग ...
वाह ... बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteलाजवाब ......बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteनील लोहित का रंग..न जाने कितने रंगों में घुला हुआ..अपने में घोलता हुआ..
ReplyDeleteसुन्दर कोमल रचना...
ReplyDeleteबहुत उम्दा दमदार अभिव्यक्ति,,,,
ReplyDeleteRecent post: होरी नही सुहाय,
नील लोहित का रंग और नील कुसुम की चाह दूर कहां जा पाते है हमसे. सुन्दर भाव सम्प्रेषण.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
ReplyDeleteविरोधी अर्थ समुच्च्य रचना में भाव की प्रगाढ़ता को बढ़ा रहा है .
ReplyDeleteशून्य पर टिमटिमाती
ReplyDeleteमेरी धरती...................भावों का एक विचित्र रंग में घुलना।
ReplyDeleteमुझे ले चलो
कच्ची मिट्टी से बने
आखिरी रास्ते के पास,
शून्य पर टिमटिमाती
मेरी धरती के पास
मुझे ले चलो
गुमसुम पानी से बने
मेरे शब्दों के पास
थोड़ी सी बची हुई
जमा पूँजी के पास
मुझे ले चलो
तुम्हें दिखेगा
नील लोहित का रंग ...
मुझसे बहुत दूर ...
थोड़े से बहरे सपनों की
उलझी किताबों को
पढ़ते-उंघते।।।।।।।।।पढ़ते -ऊंघते कर लें भाई साहब .बेहद बढ़िया रचना है कल कल झरने सा आवेग लिए .
जरूर दिखेगा
नील लोहित का रंग...
उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रिया आपकी टिपण्णी का
मुझे ले चलो
ReplyDeleteकच्ची मिट्टी से बने
आखिरी रास्ते के पास,
शून्य पर टिमटिमाती
मेरी धरती के पास
वाह,,,,, बहुत खूब
बेहतरीन
सादर !
वाह अनुभूति की पूरी सांद्रता लिए है रचना .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .
ReplyDeleteमुझे ले चलो ...
ReplyDeleteबधाई अभिव्यक्ति के लिए !
अपने की चाह से दूर रहना बहुत मुश्किल होता है ...
ReplyDeleteअर्थपूर्ण रचना ...
बहुत खूब लिखते हैं आप .शुक्रिया आपकी नियमित टिप्पणियों का .
ReplyDelete
ReplyDeleteमुझे ले चलो
कच्ची मिट्टी से बने
आखिरी रास्ते के पास,
शून्य पर टिमटिमाती
मेरी धरती के पास------
सुंदर और भावपूर्ण,जीवन के संदर्भ में कुछ कहती हुई
बधाई-------
आग्रह है मेरे ब्लॉग में सम्मलित हों,प्रतिक्रिया दें
jyoti-khare.blogspot.in
मेरे शब्दों के पास
ReplyDeleteथोड़ी सी बची हुई
जमा पूँजी के पास
मुझे ले चलो
तुम्हें दिखेगा
नील लोहित का रंग ...
..............बहुत ख़ूबसूरत...ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ....मेरा ब्लॉग पर आने और हौसलाअफज़ाई के लिए शुक़्रिया.. !!!!!
वाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब
ReplyDelete
ReplyDeleteशुक्रिया राहुल भाई .सेकुलर बे -बसी कथित धर्म निरपेक्ष ,वोट सापेक्ष व्यवस्था गत ढोंग पे व्यंग्य है .
Kisi khas ke karib jaane ke lie kabhi-kabhi khud se bhi alag hona padta h,na chahte hue bhi...
ReplyDeleteBahut hi sundar aur gahre bhao samete hui ye rachna.
शुक्रिया भाई साहब भाग मुबारक ,सुन्दर सुन्दर रचना अंश मुबारक .
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमुझे ले चलो
ReplyDeleteगुमसुम पानी से बने
मेरे शब्दों के पास
थोड़ी सी बची हुई
जमा पूँजी के पास
मुझे ले चलो
तुम्हें दिखेगा
नील लोहित का रंग ...
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...अंदर तक छू गई आपकी कविता!
बधाई और शुभकामनाएँ!
कभी समय निकालकर हमारी रचनाओं पर भी प्रतिक्रियां देंवें!
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश
http://sarikamukesh.blogspot.com/