अपने मन से हटा देना
इतना संबल सजा कर रखना ....
आगे गहरी तपिश की...
रात हो शायद
जो कुछ भी कहा...
सब सांझ में सना हुआ
छोटी--छोटी थालियों में
भींगी हुई ...
अनमनी सी पड़ी रोटियां
बुझती हुई चूल्हे की
डूबती हुई कहानियां
अपने मन से हटा देना
टूटे घरों में निढाल नींद
रात के मजार पर...
खुशबू में लोटते
लौटते पलों को
वापस मत आने देना
परिंदों के काफिले में
टिमटिमाती नन्ही तितलियाँ
बसेरा तलाशती ...
भींगती....भागती
अनबूझी पहेलियाँ
यूं ही ....
अपने मन से हटा देना
राहुल
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