Rahul...

16 April 2011

छोटी सी इबादत-8

 
..कुछ यात्रा पहले की... खुशनुमा पल.. जैसा दिखा .. तेरे साये से बचना कहाँ आसान था. उसके पहले चेहरा अपनी कहानी सुना गया था. आत्मा बेजुबान जंगल  सा कही फँस गया था. क्या कहे ? आँखों में इतने ख्वाब.. फिर भी चुपचाप मौन.. हाथ जोड़े खड़ा मदहोश बेदम सी रात. ऐसे आप क्यों देखते हो ? कौन सा सन्नाटा तुमने बुना है मेरे लिए.... मैं  कहाँ कुछ चाहती थी...ठीक उसी पहर कुछ सपने टूटे.. कुछ जुड़े... जैसे बहुत देर तक धूल में सने  परिंदों का कारवां.. कोई निढाल.. पस्त तो कुछ आसमान को निर्विकार सा देखता..... सफ़र शुरू हुआ.. कही लौटना था... समझ नहीं आया.. घर लौटे कि कही से विदा हुए. आँखों में कुछ छुपाने के बेमतलब से मायने ... पत्थर, जंगल और कहीं-कही दीखते असहाय से इन्सान की गाथा... हम तो कही ज्यादा उजाला तलाश तलाशने की जद्दोजेहद में भींग रहे थे. कैसे हुआ ये सब ? न. न. न...... ऐसा नहीं होना नहीं चाहिए था.. कोई तो जरुर कहेगा, कितने लाचार हो गए आप ? भीड़ और उमस में डूबे हजारों चेहरे.. कौन जानता है..किसे फिक्र है... बैठ कर सोच नहीं पाया.. सांस टूटने लगी... लगा.. कौन सा प्रारब्ध.. तुमने जिया है ? खिड़की से देखा... सब कुछ छूट रहा है.. फ़ोन का इन्बोक्स खोला... कुछ सन्देश है मेरे लिए...कुछ खाए कि नहीं ? फिर कही और भटक गया ? क्या जवाब दे ? सफ़र ख़त्म होने को था.. पर कही कुछ नहीं... कितना मुमकिन है अपने को खुद से बाँट लेना.. सांझ ढल गयी.. रात थोड़ी देर में खामोश हो जाएगी.. तुम वहां से कही और होगे... जानती हूँ .. आपके बारे मेरे.. किसी को नहीं कहूँगी.. खुद से भी नहीं.... फिर जंगलों में सांस टूटती नींद... माफ़ कर देना.. मैं नहीं चाहता था उस पल को...
 
                                                     राहुल
  

12 April 2011

एक-दो नजरें..

 
कुछ सुनहरे राख का मंजर
बिखरा मिला
उस समर शेष में
जहाँ समंदर एक
काफिला सा...
पिघलते जज्बात को
अपने में भिंगोये
गुम हो रहा है...
कभी ऐसा भी हुआ
थके मन से
सपनों को मुक्त करना.. 
सौ संताप में... हर बार 
एक-दो नजरें..
जर्जर यायावर वक़्त 
हाथ से निकलता 
चेहरे का धुआं ..
और...
कुछ सुनहरे राख का मंजर
तुम नहीं भी कहोगे तो...
सिमट जायेगा..
तेरी साँसों में मेरी रूह
जन्म लेगी..
मै उस वक़्त शायद..
रहूँ.. न रहूँ
                       राहुल

06 April 2011

मुक्त कर सको तो...

मुझे सवालों के घेरे में
रहने को कहा गया..
जो भी कुछ मेरा छीन गया
कैसे कुछ स्पर्श..
चुपके से..
अलफ़ाज़ बनते-बनते
कही खो सा गया..
मुझे सवालों के घेरे में
रहने को कहा गया........
कितनी सी बिखरती
स्याह हसरतें
ओ... अभी पलकों पर जो शेष है
तेरे चेहरों की शिकन
में जो पल गुजरता गया...
उसे बस.. एक बार
हाँ.. इतना ही कह रही हूँ
दे देना..
..गर कही मेरे आँचल का कोना 
तुम्हे दिखे..
इतना सा सवाल.
और अब होने-न-होने के  फासले
मुक्त कर सको तो...
दे देना.....
                                      राहुल