Rahul...

19 September 2014

तेरे घर से

कायनात को अपना कह दूं 
यह सज़दा है या गुमान है....
बस तेरे घर से लौटे थे 
कैसी बरसों की थकान है....

5 comments:

  1. प्रेम के अहसास से निकली पंक्तियां

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  2. कुछ राहें होती ही ऐसी हैं...कदम पड़ते ही बोझिल हो जाते हैं...एहसासों में डूबी पंक्तियाँ. अति सुन्दर.

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  3. कुछ रास्ते ही थकान दे देते हैं नाम भर से ...

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  4. जब साथ होते हैं तो थकान कहाँ
    पर दूरियाँ अक्सर थकान और अकेलापन महसूस कराती हैं
    सुन्दर !

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