Rahul...

09 July 2013

दार्जिलिंग डायरी-5


निर्लज्ज सरकार की उपेक्षा अनदेखी के कारण देवभूमि में हजारों लोग काल के मुंह में समा गए.. अब यह बात आधिकारिक तौर पर सामने चुकी है कि आपदा आने के बारे में सरकार को पहले ही सूचित कर दिया गया था और ये भी आग्रह किया गया था कि चार धाम यात्रा रोक दी जाए, पर सरकार ने मौसम विभाग की इस चेतावनी पर कोई संज्ञान नहीं लिया.. उत्तराखंड सरकार के मुख्य सचिव सुभाष कुमार ने अपनी नासमझी का नमूना पेश करते हुए उक्त चेतावनी को देखने तक की जहमत नहीं उठाई और लोग......इस आपदा के लिए सिर्फ सरकार को पूरी तरह दोष देना भी तर्क संगत नहीं लगता.. इस देश में हर किसी को पता है कि सरकार की मशीनरी किस तरह से काम करती है ..... इस देश के लोग भी तो सब कुछ भूलकर उसी सरकार की चरण वंदना करने लगते हैं.....जिनके कारण ये नौबतआई. उत्तराखंड सरकार का मानना है कि वहां जो हादसा हुआ, वह "Act Of God" था ! यानी मतलब साफ़ है .. भगवान के खिलाफ जाँच और केस हो... ये कितना शर्मनाक है कि इस पूरी आपदा से निपटने के लिए पक्ष-प्रतिपक्ष ने मिलकर कोई ठोस आम सहमति नहीं बनायी.. बस.. टीवी चैनलों पर नेता एक दूसरे को कोसते रहे.... 
         दार्जिलिंग डायरी का समापन किश्त लिखने की हिम्मत नहीं हो रही थी.. आज से ठीक पांच साल पहले बिहार में भी कोसी और उसकी सहायक नदियों में आई बाढ़ उसकी विनाशलीला ने हजारों जिंदगियों को लील लिया था.. उत्तराखंड से मेरा काफी लगाव जुड़ाव रहा है....पटना में मेरे स्कूल-कॉलेज के एक दोस्त विमल कान्त कोटियाल का पुश्तैनी घर टिहरी जिला के पाली गाँव में है..मैं पहली बार 2001 में विमल कान्त की शादी में देहरादून गया था..उससे पहले ही विमल के पिताजी ने सेवानिवृति के बाद पटना का घर बेचकर दून में ही नया घर बना लिया था..मैंने अपने दोस्त के साथ उत्तराखंड के कई हिस्सों में खूब यात्रा की है... कुछ जगहों को छोड़कर..... दो साल पहले ही चमोली जाने का प्रोग्राम बना था, पर बैंक से छुट्टी नहीं मिलने के कारण विमल नहीं जा सका और मैंने भी अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया.. खैर....
           दीप मिलन की बात थोड़ी अधूरी रह गयी थी... उसके द्वारा भेजी गयी इस मार्मिक दुखदायी खबर की भनक दूसरे अखबारों को भी लग गयी थी...वैसे भी खबर आगे-पीछे सभी को मिल ही जाती है..मगर सबसे बड़ा संकट फोटो का होता है.. उस वक़्त कुछ इसी तरह की बात हो रही थी.. दीप ने मुझे पहले ही कह दिया था कि तस्वीर किसी के साथ शेयर नहीं करनी है...मैंने उसे आश्वस्त कर दिया था.. एक बड़े अंग्रेजी अखबार के  नार्थ बंगाल ब्यूरो हेड ने अपने संपर्क सूत्र भिड़ाकर फोटो के लिए मुझे फ़ोन किया...मैंने सब कुछ सुनने के बाद उन्हें ना कह दिया..उस तस्वीर के लिए उक्त महाशय ने और एक-दो जगह से पैरवी करवाई..पर मुझे वही करना था, जो मैंने तय कर लिया था..दरअसल  दीप की मेहनत और जुझारूपन के आगे मैं नतमस्तक था... दीप की इस खबर को हमने पूरा कवरेज दिया.. बात इतनी ही पर ख़त्म नहीं हो गयी थी..
           दीप खुद उस खबर पीड़ित परिवार को लेकर इतने मर्माहत हुए कि उन्होंने अपने मन में बहुत कुछ ठान लिया.. उन्होंने अर्जुन तमांग शोभा तमांग के उजड़ चुके परिवार की मदद के लिए कर्सियांग के गोजमुमो विधायक डॉ. रोहित शर्मा से मुलाकात की.. वैसे भी उस दुखदायी घटना के दिन  विधायक और एसडीओ ने भी लोअर जिम्बा गाँव का दौरा किया था..दीप ने उस परिवार को नया घर बनाने के लिए विधायक की पहल पर सरकार से आर्थिक मदद दिलाने में काफी मदद की... इसके साथ ही दीप ने मिरिक प्रेस क्लब की ओर से चलाये राहत अभियान के तहत चंदा जमा कर 25 हजार रुपये अर्जुन तमांग को दिए... लगभग एक महीने तक दीप मिलन उस परिवार से जुड़े रहे और चट्टान की तरह अड़े रहे....खबरों से अलग उन्होंने सेवा भाव मानवीयता का उत्कृष्ट-अनुपम उदाहरण पेश किया... पर दीप ने कभी खुद को इसका श्रेय नहीं दिया...अक्टूबर में दुर्गापूजा के समय जब मैं मिरिक में फूलपाती शोभा यात्रा कवर करने गया था तो मिरिक लेक के सामने खुले मैदान में बैठकर चाय पीने के दौरान उनसे कुछ आत्मिक बातें हुई..तमांग परिवार की बात उठी तो उन्होंने खामोशी ओढ़ ली. कुछ देर के बाद दीप ने सिर्फ इतना ही कहा कि उन बातों को जाने दीजिये...आपने वो लम्हा नहीं देखा, जो हमने देखा...हमने तो कुछ नहीं किया, बस होता चला गया......कुछ और शब्द कहते-कहते उनकी आँखें नम हो  आई....तब मैंने कुछ और पूछना ठीक नहीं समझा.. मुझे एक नए दीप मिलन प्रधान का अक्स दिखा... पत्रकार, खबर, फोटो और अखबारी मगजमारी में डूबे रहने वाले दीप से अलग..एकदम अलग...
          डायरी के पहले अंक में मैंने दार्जिलिंग रिपोर्टर रोबिन गिरी, उनके मकान और दो फिल्मों पर चर्चा करने की बात कही थी.. आप सबको 1992 में प्रदर्शित अजीज मिर्जा के निर्देशन में बनी फिल्म राजू बन गया जेंटलमैन तो जरूर याद होगी..हिंदी  फिल्मों का ये वो दौर था जिसमें रूमानियत में डूबी हुई कहानियों को फिर से स्क्रीन पर परोसा जा रहा था.. हम जैसे लोगों के लिए भी ये वो पल था जिसमें माथे से टपकती पसीने की बूँदें गुलाब सी नजर आती थी.. इसी फिल्म की काफी शूटिंग दार्जिलिंग स्थित रोबिन के घर पर हुई थी..तब शाहरुख़ खान सिर्फ शाहरुख खान थे.. किंग खान नहीं बने थे.. बकौल रोबिन गिरी एक लम्बे अरसे से दार्जिलिंग में हिंदी फिल्मों की शूटिंग नहीं हुई थी.. करीब 6 -7 सालों तक तो पूरे हिल में हालात इतने नारकीय रहे कि किसी भी हिंदी/बांग्ला फिल्मों के निर्माता-निर्देशक ने यहाँ शूटिंग करने की हिम्मत नहीं की .. 1988 में दार्जिलिंग-गोरखा पार्वत्य परिषद् के बनने से पहले ही हालात बिगड़  चुके थे..जब मैं पहली बार रोबिन के उनके दार्जिलिंग स्थित  घर पर गया था तो शाहरुख़ खान के साथ उनकी तस्वीर दीवार पर टंगी देखी  थी.. मैंने कई बार महसूस किया  कि जब भी दार्जिलिंग से बाहर का कोई आदमी रोबिन से मिलता तो उसे ये बताना नहीं भूलते कि किंग खान उनके घर में चुके हैं और उनके साथ एक ऐतिहासिक फोटो भी है....
      पिछले साल रिलीज हुई अनुराग बासु की फिल्म बर्फी तो आप सबों ने भी देखी ही होगी..इस फिल्म को ऑस्कर के लिए भी नामित किया गया था, मगर उसे सफलता नहीं मिली.. दार्जिलिंग को केंद्र में रखकर बनायी  गयी इस फिल्म का वैसे तो परदे पर हीरो रणवीर कपूर है, पर परदे के पीछे जिस शख्स ने अपना हुनर दिखाया है, वो शख्स है सिनेमैटोग्राफर रवि बर्मन.... रवि एक क्लासिक सिनेमैटोग्राफर हैं.. फिल्मों को अपने कैमरे में उतारने के साथ-साथ उन्होंने कई बेहतरीन वृतचित्र बनाए हैं..बर्फी के पूरे कैनवास पर रवि की कलाकारी साफ़-साफ़ दिखती है...रवि बर्मन से मेरी मुलाकात कोलकाता में दिसम्बर 2011 में उस वक़्त हुई थी.. जब नंदन ऑडिटोरियम में इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल चल रहा था. मैं उस वक़्त कोलकाता में ही था..कई दिनों तक चलने वाले उस फेस्टिवल को कवर करने के लिए मैं अपने फोटोग्राफर अजय बोस के साथ जाता था..वहीँ पर बांग्ला सिनेमा के कुछ दिग्गज कलाकारों से मेरी मुलाक़ात हुई थी..जिसमें खुरदरे चेहरे वाले बेमिसाल एक्टर सव्यसाची चक्रवर्ती हाल ही में दिवंगत हुए रितुपर्णो सेनगुप्ता का मैंने अलग से इंटरव्यू किया था.. अनुराग बासु उन दिनों हावड़ा ब्रिज के आसपास अपनी फिल्म की शूटिंग में व्यस्त थे..एक दिन उसी फेस्टिवल में बर्फी की टीम भी पहुंची थी.. जिसमें अनुराग बासु के साथ रवि बर्मन और नवोदित अभिनेत्री इलियाना डिक्रुज  भी आई हुई थी..अजय बोस ने ही मेरा परिचय रवि बर्मन इलियाना से कराया था.. अजय बोसव रवि एक दूसरे को पहले से ही जानते थे.. मैं तब  बर्फी की टोटल कास्ट टीम के बारे में नहीं जानता था..और ना ही मैंने इलियाना डिक्रुज का नाम सुना था..हाँ, ये मुझे पता था कि इस फिल्म में प्रियंका चोपड़ा और रणवीर कपूर का लीड रोल है .. अजय बोस ने ही मुझे बताया कि इलियाना का भी इस फिल्म में बढ़िया किरदार है..उन्होंने ये भी बताया कि अनुराग बासु ने इस फिल्म में अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है..इलियाना रवि से संक्षिप्त बातचीत भी हुई.. तब मैं एकदम ही नहीं समझ पाया कि बेहद साधारण से दिखने वाले रवि बर्मन कितने बड़े सिनेमैटोग्राफर हैं.. जबकि बातचीत के वक़्त इलियाना बेहद शांत थी..उन्होंने बेहद औपचारिक तरीके से दो-चार शब्द कहे और हाथ मिलाये.. रवि बर्मन से ही मुझे जानकारी मिली कि एक महीने के बाद फिल्म की यूनिट दार्जिलिंग जाने वाली है.. 
           दार्जिलिंग के आईनोक्स मल्टीप्लेक्स में जब हमने रोबिन के साथ बर्फी देखी तो एहसास हुआ कि अनुराग बासु ने सच में आम प्रेम कहानियों की पिटी-पिटाई लीक से हटकर कुछ नायाब गढ़ा है..कुछ नाटकीय दृश्यों को थोड़ी देर के लिए भूल जाएँ तो फिल्म का सन्देश मजबूती से उभरता है.. परदे पर उसी दार्जिलिंग को देखना उन्हीं गलियों में भटकना कितना सुखद एहसास कराता है, ये बयान नहीं किया जा सकता..सुघड़ बंगाली कन्या श्रुति के किरदार में इलियाना का काम कितना लाजवाब है, फिल्म देखकर ही ये अंदाज लगाया जा सकता है.. जरा एक बार फिर से याद कीजिये इलियाना-रूपा गांगुली (परदे पर माँ-बेटी ) के बीच हुए उस दिलचस्प संवाद को जिसमें प्यार होने होने के अपने-अपने तर्क को दोनों कैसे खारिज भी करती है और फिर उसके समर्थन में मजबूती से खड़ी भी हो जाती है. रवि बर्मन की पूरी कैमरा क्रू टीम जिस तरह से दौड़ती-हांफती हुई टॉय ट्रेन, पतली संकरी गलियों चाय बागान को अपने जद में लेती है, वो सच में काफी दुरूह रोमांचक है...दार्जिलिंग की आम जिन्दगी को पूरी तन्मयता के साथ अनुराग बासु बर्फी में पिरोते हैं . फिल्म देखते समय रोबिन ने बताया था कि जामुने में इसकी शूटिंग करते हुए पूरी यूनिट को काफी दिक्कत हुई थी. गोजमुमो के कुछ दबंग कार्यकर्ताओं ने जब इसकी शूटिंग में अड़ंगा लगाया तो बासु ने मुंबई में अपने कुछ दिग्गज लोगों से मोर्चा सुप्रीमो विमल गुरुंग को फ़ोन करवाया था. तब जाकर बात बनी थी . बर्फी की शूटिंग के साथ एक मजेदार किस्सा मेरे फोटो जर्नलिस्ट पुलक कर्मकार ने भी बताया था . दूसरी बार इसकी यूनिट शूटिंग के लिए सिलीगुड़ी में गुलमा स्टेशन के पास देवीडांगा के पास आई हुई थी
       शूटिंग की खबर मिलते ही वहां काफी भीड़ जुट गयी. सभी अखबारों चैनलों के  भाई लोग वहां मुस्तैदी से जम गए. उस जगह पर रणवीर इलियाना को लेकर कुछ शॉट्स लेने थे. फिल्म के प्रोडक्शन मैनेजर ने किसी भी फोटोग्राफर को स्नैप लेने से साफ़ मना कर दिया. इस बात को लेकर पुलक साहब तन गए. प्रोडक्शन मैनेजर भी अपनी जिद पर अड़ा रहा. बहुत देर के बाद आखिरकार पुलक कर्मकार किसी तरह दोनों की तस्वीर उतार सके. उसी जगह पर गुलमा टी स्टेट है. वहां का दृश्य काफी सुकून देने वाला है, खासकर बरसात के दिनों में जब चाय की पत्तियाँ पूरी तरह धुल जाती है. देवीडांगा के ठीक पहले मिलन मोड़ है.. ठीक उसके बगल से महानंदा नदी गुजरती है...अक्सर पुलक दा की वोदका पार्टी यहीं पर होती थी.. करीब 13 महीने सिलीगुड़ी में रहने के बाद जब अप्रैल 2013 में वापस पटना लौटे तो काफी कुछ पीछे छूट गया था..पर उस क्षणिक सफ़र के तमाम साथी आज भी मेरे साथ हर पल यादों में संग-संग चलते हैं.....
  समाप्त 

 

14 comments:

  1. आपकी यादों ने हमें भी संगी बना लिया..

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  2. उठी तो उन्होंने खामोशी ओढ़ ली. कुछ देर के बाद दीप ने सिर्फ इतना ही कहा कि उन बातों को जाने दीजिये...आपने वो लम्हा नहीं देखा, जो हमने देखा...हमने तो कुछ नहीं किया, बस होता चला गया......कुछ और शब्द कहते-कहते उनकी आँखें नम हो आई....तब मैंने कुछ और पूछना ठीक नहीं समझा.. मुझे एक नए दीप मिलन प्रधान का अक्स दिखा... पत्रकार, खबर, फोटो और अखबारी मगजमारी में डूबे रहने वाले दीप से अलग..एकदम अलग...
    डायरी के पहले

    दार्जिलिंग डायरी लगता है अभी भी ज़ारी है रिपोर्ताज कब वैयक्तिक पीड़ा बन गया अखबर ही न हुई .बेहतरीन प्रस्तुति उत्तराखंड से बर्फी तक .बर्फी की तरह मीठी भी ,डूब चुके लोगों के लिए उदास भी

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  3. आपके दार्जिलिंग समापन डायरी के साथ हमलोगों ने भी दार्जिलिंग के साथ साथ सभी चीजो का आनंद लिया.. धन्यवाद .....

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  4. राहुल भाई यहाँ सिर्फ एक ही मौसम पर कान दिए जाते हैं चुनाव का मौसम और वह अब कभी भी हो सकता है .सरकार को बिल लाकर खुदसेकुलर बिल में घुसने की इसी लिए जल्दी है .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .

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  5. आप अच्छा लिखते हैं , बधाई !

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  6. दार्जलिंग की सुंदर सुखद यात्रा का समापन हुआ
    पर स्मृतियों में कुछ मार्मिक पल जीवित रहेंगे
    आपका विस्तारवादी लेखन वाकई कमाल का है
    अगले पड़ाव के इन्तजार में
    सादर

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  7. दार्जिलिंग समापन डायरी के साथ हमने भी सैर के आनंद उठा लिए राहुल जी

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  8. पिछले कई दिनों से आपका पोस्ट पढ़ने को नहीं मिला तो मुझे लगा शायद व्यस्तता की वजह से आपने कोई नयी पोस्ट नहीं डाली हो. लेकिन अब पता चला कि आपके इस पोस्ट की फीड कभी आई नहीं और अभी दुबारा देखा तो भी फीड में नहीं है. शायद कुछ तकनीकी समस्या. अगर ब्लॉग पर ईमेल सब्सक्रिप्शन का लिंक भी दे देंगे तो अच्छा रहेगा अगर फीड की समस्या यूँ ही बरकरार रहे.

    आपकी लेखनी ने पूरे श्रंखला के दरम्यान बांधे रखा दार्जिलिंग से. अपने हर तरह के अनुभवों को बहुत खूबसूरत प्रस्तुति दी है आपने. यह पूरी श्रंखला स्मृति में बहुत दिनों तक रहने वाली है . बहुत बढ़िया लेखनी.

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  9. rahulmukul.blogspot.com पर आपके जीवंत रिपोर्ताज का इंतज़ार कृपया पढ़ें-

    Virendra Sharma ‏@Veerubhai1947
    24m
    ram ram bhai मुखपृष्ठ शनिवार, 20 जुलाई 2013 WHAT GOD DOES NOT DO

    http://veerubhai1947.blogspot.com/
    Collapse

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  10. rahulmukul.blogspot.com पर आपके जीवंत रिपोर्ताज का इंतज़ार कृपया पढ़ें-नया चिठ्ठा रास आये नै आस लाये। मुबारक मुबारक मुबारक .
    ॐ शान्ति

    Virendra Sharma ‏@Veerubhai1947
    24m
    ram ram bhai मुखपृष्ठ शनिवार, 20 जुलाई 2013 WHAT GOD DOES NOT DO

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  11. rahulmukul.blogspot.com पर आपके जीवंत रिपोर्ताज का इंतज़ार कृपया पढ़ें-नया चिठ्ठा रास आये नै आस लाये। मुबारक मुबारक मुबारक .
    ॐ शान्ति आपके इस अभिनव चिठ्ठे के हम पहले अनुगामी बन गए हैं

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  12. जब भी पढता हूँ बस प्रवाह में पढता हूँ आपको
    बहुत सुन्दर वर्णन
    साभार!

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  13. कमाल है जुलाई २०१३ की यह डायरी मुझे अब पढ़ने को मिल रही है। देखा तो मित्रों की इस पर टिप्पणियां भी अाई हुई हैं। कहां से कहां तक जाकर रुका आपका सफर। लाजवाब। बहुत कुछ बताता, अहसास कराता हुआ।

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