तेरे-मेरे
कुछ कच्चे रंग
अधूरा सा ...
अबोध सा...
हाथों में
सना हुआ
रात में
गुनता हुआ
भोर की किताब में
भूला सा...
भटका सा..
तेरे मेरे
कुछ कच्चे रंग
चिट्ठी के अधरों पर
बिना पते का
बेनाम सा
आँगन की मिट्टी में
चूल्हे की फरियाद सा
कच्चे-पके
आंच सा
तेरे-मेरे
कुछ सच्चे रंग
.......................राहुल
बहूत बढीया है जी...
ReplyDeleteहोली पर्व कि शुभकामनाये
होली का पर्व आपके जीवन में अपार खुशिया लेकर आये....
सच्चे रंग ऐसे ही होते हैं..बिना पते का बेनाम सा मगर चोखा..जो छूटे नहीं..
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