कई बार...
जागते-जागते
जब नज्में तुम्हारी
जुदा हो जाती है..
खुद तुम से...
गीली- गीली उदासियाँ
और...
मुक्त होने की याचना
उसी फरियाद की तरह
मुझसे आकर मिलती है..
जहाँ कहानियाँ..
तुम्हारी नज्मों में
ढलने को बेताब
हाथ जोड़े...
मुझसे विनती करती है
नज्में तुम्हारी
हमारी आह से..
चुपचाप..
मेरी कहानियों का
पन्ना...चुराती हुई
गायब हो जाती है
मैंने कहीं सुना था
किसी दरिया के समंदर में
मिलने तक...
नज्म जिन्दा रहती है
सच ही सुना था
तुम.. तुम्हारी नज्में
मेरी शापित कहानियों को
छोड़कर...
कैनवास फिर भी...
दीवार पर टंगी रह जाती है..
जब नज्में तुम्हारी
जुदा हो जाती है..
खुद तुम से...
ओह ! बहुत सुन्दर..अच्छी लगी..
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
bahut sundar
ReplyDeletebehatarin bhav abhivykti