मौसम ... जो इस बार आया और चुपके से चला भी गया .....न तुम कुछ कह सके .. न वो कुछ याद दिला पाया... पर कुछ साथ चिपक सा गया ... जेहन में ... ये बताने को कि हम किसी वक़्त के यायावर सा तुम्हे देखते और खोजते रहेंगे ..... कोई एक दिन ही तो होता है ... समेटने को ... खुद को भिंगोने और कही डुबो देने को ... शायद वो भी नहीं एक पल के कतरे में कितना एहसास सिला हो गया .... तुम जब देखोगे ... फुरसत में ...बंद आँखों से .... हमने तो वो भी कहीं खो दिया... धीमी सी ... सिली ... सी आंच पर कोई तुम्हे पिछले जन्मों से एहसान बटोरने वाला आदमी मानकर खोजता फिर रहा है .... कुछ दुबिधा तुमने तय कि ......जैसे सब कुछ कोई और किसी का अकेला हो... मैं ऐसा तो नहीं जानता...फिर ऐसा मौसम ... बारिश .....बूँदें ......आएगा नहीं ....तुम कही और होगे और मुझे इतना मालूम है कि तुम सबको माफ़ कर दोगे......मै ठीक जानती हूँ .......तुम ऐसा ही करोगे .......
अभी और भी .............राहुल
BAHUT ACHE
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