Rahul...

28 May 2012

फिर से...

फिर से..
रात तेरे क़दमों में 
कुछ पल के लिए 
आएगी ...
सब एकमत सस्वर 
गुनगुनाएंगे 
मंगल गान...
हम भी तो होंगे ना ?
फिर से...
दूब की कोपलें 
स्नेह्शिक्त आँगन से 
निकल..
तुम्हारे आँचल में 
सिमटी सी होगी 
हम भी तो होंगे ना ?
फिर से..
शाम की घूंघट में 
पिघलता शोर 
तुम्हें सुनाई देगा..
हम भी तो होंगे ना ?
 निरुदेश्य...
स्थिर प्रज्ञ...
फिर से...
आसमान से बरसती 
चटक किरणों में 
हम आयेंगे  
मंगल गान बनकर....
                                       राहुल