फिर से..
रात तेरे क़दमों में
कुछ पल के लिए
आएगी ...
सब एकमत सस्वर
गुनगुनाएंगे
मंगल गान...
हम भी तो होंगे ना ?
फिर से...
दूब की कोपलें
स्नेह्शिक्त आँगन से
निकल..
तुम्हारे आँचल में
सिमटी सी होगी
हम भी तो होंगे ना ?
फिर से..
शाम की घूंघट में
पिघलता शोर
तुम्हें सुनाई देगा..
हम भी तो होंगे ना ?
निरुदेश्य...
स्थिर प्रज्ञ...
फिर से...
आसमान से बरसती
चटक किरणों में
हम आयेंगे
मंगल गान बनकर....
राहुल