जब कोई चेहरा था
कुछ अपने पल सा ...
आधी सी जमीन पर
एक उम्मीद उगी थी ...
मखमली घास पर
वही चेहरे ....
वही पल .....
वही उम्मीद ...
काँटों की जद में घिर गया
कुछ कहा नहीं ...
रोया नहीं ...बस जीता रहा .....
हम सब ऐसे ही डूब जाते हैं ...
हम ऐसे ही प्रारब्ध जीते हैं .....
जब अपना कुछ नहीं होता
कुछ बारिश की नेमत है
कुछ तिनकों का आसरा
हम सब ऐसे ही डूब जाते हैं ...
राहुल